अब खुद ही गिर जाओ तुम, टूट कर जमीं पर ।

पत्थर मारने वाला बचपन, मोबाइल मे व्यस्त है।।
अच्छी थी, पगडंडी अपनी।
सड़कों पर तो, जाम बहुत है।। 🙂

फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।
सबके पास, काम बहुत है।। 🌹

नहीं जरूरत, बूढ़ों की अब।
हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।। 🌸

उजड़ गए, सब बाग बगीचे।
दो गमलों में, शान बहुत है।। 🌻

मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं।
कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है।।🌹

पीते हैं, जब चाय, तब कहीं।
कहते हैं, आराम बहुत है।।🌸

बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री।
व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है।।🌻

आदी हैं, ए.सी. के इतने।
कहते बाहर, घाम बहुत है।।🌹

झुके-झुके, स्कूली बच्चे।
बस्तों में, सामान बहुत है।।🌸

नही बचे, कोई सम्बन्धी।
अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है।!🌻

सुविधाओं का, ढेर लगा है।
पर इंसान, परेशान बहुत है।। Dr.Nand Lal Sharma
Dulahipur

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